बचपन का खेल

जिम्मेदारियों का बोझ पाकर ख्वाब अधूरा हो गया

वह बचपन का खेल ना जाने कहां गुम हो गया.....

वह गांव और गलियां सब अजनबी हो गया
वह सब मेरे दोस्त और लड़कपन जाने कहां गया......

मिट्टी और खपरैल का वह घरौंदा कहां गया
तुलसी का वह प्यारा सा आंगन जाने कहां गया....

वो वक्त की परछाई ना जाने कहां गया
वह खिलखिलाती दुनिया और मस्ती कहां गया....

वह सावन का त्यौहार और झूला कहां गया
जिससे टपकती की बूंदे वह छाजन कहां गया....

जब गम का हो अंधेरा वह मां का आंचल कहां गया
मां की गोद जादू की झप्पी ना जाने कहां गया.....

हर पल पिता के साए में थे वह बचपन कहां गया
लड़ते झगड़ते भाइयों का प्यार मधुबन कहां गया....

वह गुड्डे गुड़ियों की शादी मिट्टी का खिलौना कहां गया
वह प्यार अपनापन अधूरा ख्वाब बनकर कहां गया....

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6 Comments

सुन्दर अभिव्यक्ति

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Gunjan Kamal

08-Jun-2023 10:34 PM

👏👌

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Reena yadav

08-Jun-2023 06:55 PM

👍👍

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